संजीव कुमार शुक्ला
हम हमेशा विश्वास में ही लुटे!! दरअसल इसने अपने बीवी-बच्चों से वायदा किया था कि हम तुम सबको ताजमहल दिखवाएंगे। खूब जी भरके फोटू- वोटू खिंचवा लेना। सो उसने इसी बीच भारत-यात्रा का प्रोग्राम सेट कर लिया।
हम लोग “अतिथि देवो भव” के झांसे में आ गये। खूब आवभगत किये। पूरी फ़ैमिली ने ताजमहल की एक-एक दीवार पाँच-पाँच बार देखी। इसके अलावा बन्दे ने यहाँ से जाकर कोरोना से निपटने के लिए भारत से कठिन स्पेलिंग वाली दवा भी ले ली; हमने मानवता दिखाते हुए एक खेप दे भी दी।
हम लोग ठहरे निश्छल आदमी! पर अहसान मानना तो दूर उल्टे चिल्लाने लगा कि बेकार ही दवा मंगा ली, यह तो फायदा ही नहीं कर रही। बताइये, यह तो बहुतै बड़ा वाला है …. ख़ैर कोई बात नहीं, धोखा ही सही, जात तो पहचानी गई।
आगे के लिए सीख मिल गयी। ख़ैर अब आगे से अपने इमोशंस को विदेश नीति पर हावी न होने देंगे। और हाँ, एक और सावधानी बरतनी पड़ेगी और पड़ेगी ही, जब ऐसे-ऐसे लोग आएंगे; ……..तो सावधानी यह है कि जो भी यहाँ आए, चाहे वह जित्ता अपना सगा हो, उससे पहले यह लिखापढ़ी करवा लो कि ताजमहल देखने के कम से कम तीन साल तक फेसबुक से अनफ्रेंड और ट्विटर हैंडल से अनफॉलो नहीं करोगे।
और अगर आनाकानी करे तो वही दिल्ली में यमुना के दो-तीन चक्कर लगवाकर वापस भिजवा दें।
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