न जाने क्यों मैं पैदा हुई, सब कुछ दे वे हंसते थे, मैं रोती थी ना जाने क्यों,कुछ पढ़ी हुई तो मैंने और संभाला, तू खुद को विद्यालय में पाया, पढ़ती पर पढ़ती वर्णमाला ना जाने क्यों, दोस्त और अध्यापक संग, 16 वर्ष बिताए कल इन से बिछड़ गई, सोच मन घबराए ना जाने क्यों,पता ही नहीं चला इतने साल बीते, ऐसे एक एक लम्हा याद आता है,कल की बात हो जैसे ना जाने क्यों, वह दोस्तों के संग खेला, वह छोटी-छोटी शैतानियां, वह हाई स्कूल का रिजल्ट निकालना, दिल का घबराना परेशान होना, और अध्यापक को सताना,वह संग में पिकनिक जाना, वह दूसरों का लंच खाना, वह गाने गाना वह मुझ पर जाना ना जाने क्यों, वह दोस्तों पर पूरा विश्वास, और दोस्ती में तो फिर भी खाना, शायद सारे फूल मुड़ जाने के लिए ही खेलते हैं,शायद हम बिछड़ने के लिए ही मिलते हैं,ना जाने क्यों, जुदाई का असली दुख, आज महसूस होता है, कल क्या पता किससे किससे बिछड़ना पड़े, दुख इतना दुख में है जीवन में सोचती हूं कि मैं पैदा ही क्यों हुई, ना जाने क्यों न जाने क्यों,
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