राज भोज के दरबार में 1 दिन सभासदों में बहस होने लगी कि भक्ति और साधना या सेवा और सज्जनता में से कौन बड़ी है?
इस बहस का राजा कोई भी निर्णय नहीं दे पाए।
कुछ दिन बाद राजा हिंसक पशुओं का शिकार करने एक जंगल में गए और वहां रास्ता भटक गए। भीषण गर्मी पड़ रही थी।
अतः उन्हें बहुत तेज प्यास लगी पर दूर दूर तक पानी दिखाई नहीं दे रहा था।
कुछ दूरी पर उन्हें एक साधु की कुटिया दिखाई दी।
वाह कुटी पर पहुंचते ही पानी पानी चला कर मूर्छित हो गए। साधु समाधि में लीन थे।
राजा का शोर सुनकर उनकी समाधि भंग हो गई।
उन्होंने तुरंत ही अपने कमंडल से जल निकालकर राजा के मुख पर छिड़क दिया। उन्होंने पानी पिलाया और राजा की जान बचाई।
राजा ने हाथ जोड़कर कहा – ‘महाराज, आप की समाधि मेरे कारण भंग हुई, इसका मुझे बेहद कष्ट है।’
साधु ने हंसते हुए कहा – ‘ वत्स, जो आनंद मुझे समाधि में मिल रहा था।
उससे कहीं ज्यादा संतोष तुम्हें पानी पिलाकर तुम्हारे प्राण बचाने में मिला है।
भक्ति और सेवा दोनों ही ईश्वर को प्राप्त करने के साधन है।
यदि मैं साधना और समाधि में लगा रहता और तुम प्यासे होने के कारण प्राण दे देते, तो ईश्वर मुझे कभी शमा नहीं करता।’
उस दिन राजा भोज की जिज्ञासा का स्वत: ही समाधान हो गया कि भक्ति की तुलना में सेवा का महत्व अधिक होता है।
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