मुक्तिबोध-Muktibodh
यहां बिंब और प्रतीक कथ्य को आश्चर्यजनक तरीके से विचारोत्तेजक बनाते हैं और यही मुक्तिबोध के लेखकीय कौशल की सार्थकता है।...
“मतलबी यार किसके, दम लगाए खिसके”-Matlabi yar kiske,dam lagye khiske
संजीव शुक्ल
ये बग्घा ट्रम्प शुरू से ही लकड़बग्घा था। इसकी चालाकी तो अब समझ में आई...
आज की पत्रकारिता
संजीव कुमार शुक्ला पत्रकारिता के अपने मानक होते हैं। वह सोद्देश्यपरक होती है। लोकमंगल की कामना, उसका अभीष्ट है। मानवीय...
खालिस्तानी किसान-khalistani kisan
अरे भाई किसानों को खालिस्तानी कहने पर इतना क्या बुरा मानना !!!!
अरे यह तो उनकी पहचान है।...
लड़ाई के सुर पर जूते की संगत
संजीव कुमार शुक्ला मेरा मानना है कि लड़ने के लिये मुद्दों की जरूरत नहीं होती बस आपके अंदर अदम्य इच्छाशक्ति...
साम्प्रदायिकता और हम
संजीव कुमार शुक्ला आज जबकि पूरा देश, पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है, हमको अपने देश में कोरोना...
“इस हरे-भरे देश में चारे की कमी नहीं है, -घोटाले
संजीव कुमार शुक्ला
जो अखबारों में छपते रहते हैं, उनके यहाँ छापा पड़े, यह ठीक नहीं।...
एक व्यंग्य “नासमझ मजदूर”
संजीव कुमार शुक्ला
सरकार हमें घर की याद आ रही, अब हम घर जाना चाहते हैं। अब यहाँ...
साहब, छोटेलाल और किसान -Sahab, Chotelal aur Kisan
अरे सरकार ये किसान आपसे बात करना चाहते हैं…कौन किसान?
अरे वही जो आंदोलन कर रहे हैं ऐसे...
**सूरज भगवान वाली करनीति**-Suraj Bhagwan wali Karneeti
संजीव शुक्ल
एक अच्छे शासक की निशानी यही है कि वह रक्षा नीति और कर...