चैतन्य महाप्रभु भारत के महान आध्यात्मिक गुरुओं में से एक हैं। चैतन्य महाप्रभु ने भक्ति मार्ग के कई बड़े उधारण प्रस्तुत किए हैं। चैतन्य महाप्रभु की जयंती हर साल 14 जून को मनाई जाती है।
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चैतन्य महाप्रभु का प्रारंभिक जीवन
चैतन्य महाप्रभु का जन्म 18 फरवरी साल 1486 को विश्वम्भर में हुआ था। चैतन्य महाप्रभु के जन्म के समय भारत देश में पूर्ण चंद्र ग्रहण देखा गया था।
चैतन्य महाप्रभु के जन्म समय को हिंदू शास्त्रों में और पुराणों में बहुत शुभ माना जाता है। चैतन्य महाप्रभु मां साचीदेवी और उनके पति जगन्नाथ मिश्रा की दूसरी संतान थे।
बचपन में चैतन्य महाप्रभु का नाम विश्वंभर था। पर सभी लोग इनको निमाई कहकर बुलाते थे। गोरा रंग होने के कारण चैतन्य महाप्रभु को बचपन में गौर हरी, गौर सुंदर जैसे नामों से पुकारा जाता है।
कई स्रोतों में कहा गया है कि चैतन्य महाप्रभु जब पैदा हुए तब उनमें भगवान कृष्ण की कल्पना की गई छवि के जैसी समानताएं थीं। चैतन्य महाप्रभु में बहुत कम उम्र से ही भगवान कृष्ण की आराधना करना शुरू कर दिया था।
चेतन महाप्रभु इतने भक्ति में लीन थी कि वह बहुत कम उम्र से ही सभी लोगों को भजन सुनाने लगे थे और धीरे-धीरे इतना ज्ञान उनके अंदर बढ़ गया कि वह एक विद्वान के रूप में उभर कर आए।
जब चैतन्य महाप्रभु मात्र 16 साल के थे तब उन्होंने अपना एक निजी स्कूल शुरू किया जिस स्कूल के द्वारा कई विद्यार्थियों का जीवन रोशनी से भर गया।
चैतन्य महाप्रभु इतने विद्वान थे कि एक बार वाद विवाद में उन्होंने केशव कश्मीरी नामक एक बहुत बड़े विद्वान को हरा दिया था। इस लंबे समय तक चले वाद-विवाद में केशव कश्मीरी ने चैतन्य महाप्रभु के सामने अपनी हार स्वीकार कर ली थी।
चैतन्य महाप्रभु की शिक्षा
चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं का एकमात्र लिखित रिकॉर्ड सिक्सकास्टम, ‘आठ श्लोकों की 16 वीं शताब्दी की प्रार्थना है। चैतन्य महाप्रभु की इन लेखिकाओं पर गौड़ीय वैष्णववाद की शिक्षाएं और दर्शन इस संस्कृत पाठ पर आधारित हैं।
चेतन महाप्रभु की शिक्षाएं 1 से लेकर 10 बिंदुओं में विभाजित हैं और इसी के साथ भगवान कृष्ण के जीवन पर केंद्रित हैं।
चेतन महाप्रभु की भगवान पुरी से मुलाकात
चैतन्य महाप्रभु ने अपने पिता जगन्नाथ मिश्रा की मृत्यु के बाद,अपने पिता को श्रद्धांजलि देने के लिए एक धार्मिक समारोह के लिए गया के प्राचीन शहर का दौरा किया।
जब चैतन्य महाप्रभु गया के दौरे पर थे तब उनकी मुलाकात भगवान पुरी नामक एक तपस्वी से हुई। जिसके बाद आगे चलकर भगवान पूरी चैतन्य महाप्रभु के गुरु बन गए।
चैतन्य महाप्रभु की भारत यात्रा
चैतन्य महाप्रभु ने कई सालों तक भक्ति का प्रचार-प्रसार करते हुए भारत की यात्रा की। चेतन महाप्रभु ने साल 1515 में भगवान कृष्ण के जन्म स्थान वृंदावन का दौरा किया।
चैतन्य की यात्रा का सबसे बड़ा उद्देश्य वृंदावन में भगवान कृष्ण से जुड़े सभी स्थानों का दर्शन करना था। ऐसी मान्यता भी है कि चैतन्य महाप्रभु सातों मंदिर के साथ-साथ बाकी के भी सभी महत्वपूर्ण स्थानों का पता लगाने में सफल रहे।
जिन स्थानों को आज भी वैष्णवों द्वारा देखा जाता है। कई वर्षों तक यात्रा करने के बाद चैतन्य महाप्रभु उड़ीसा में बस गए। जहां चैतन्य महाप्रभु ने अपने जीवन के अंतिम 24 वर्ष जिए।
चैतन्य महाप्रभु की मृत्यु
चैतन्य महाप्रभु की मृत्यु को लेकर कई बातें कही गई हैं। चैतन्य महाप्रभु के अनुयायियों का दावा है कि चैतन्य महाप्रभु की हत्या कई तरीकों से की जा सकती थी।
चैतन्य महाप्रभु को लेकर एक रहस्य में बात यह भी कहीं जाती है कि चैतन्य महाप्रभु जादुई रूप से गायब हो गए। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों का कहना है कि चैतन्य महाप्रभु की मृत्यु उड़ीसा के गोपीनाथ मंदिर में हुई थी।
कई विद्वानों और इतिहासकारों का कहना है कि चैतन्य महाप्रभु मिर्गी से पीड़ित थे। जिसकी वजह से उन्हें कई बार शमिर्गी के दौरों का सामना करना पड़ा। चैतन्य महाप्रभु की मिर्गी की वजह से 14 जून 1534 को मृत्यु हो गई।
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