वन में एक मोर रहता था। वहां एक नदी थी, जिसमें एक कछुआ रहता था।
मोर को नाचता देखर कछुआ बहुत प्रसन्न होता था इसलिए ने उसको अपना मित्र बना लिया।
एक दिन उस वन में एक शिकारी आया। उसने जाल डालकर मोर को पकड़ लिया।
मोर को फंसा देखकर कछुआ शिकारी के पास गया और उसने फरियाद की ‘ तुम जो मूल्य लेना चाहो ले लो परन्तु मेरे मेरे मित्र को छोड़ दो। ‘
शिकारी थोड़ा सोचने के बाद बोला ‘ अच्छा तुम इस नदी से एक रत्न निकालकर ला दो, में इसे छोड़ दूंगा।’
कछुए ने नदी में डुबकी लगाई और रत्न लेकर बाहर आया। शिकारी ने रत्न लेकर वादे के अनुसार मोर को छोड़ दिया।
इसके बाद कछुए ने मोर को वन छोड़ने की सलाह दी तथा मोर ने वन छोड़ दिया।
घर जाकर शिकारी सोचने लगा कि यदि में दो रत्न मांगता तो ज्यादा अच्छा होता।
अगले दिन शिकारी ने वापस जाकर कछुए से कहा ‘ मुझे ऐसा एक और रत्न दो नहीं तो में मोर को पकड़ लूंगा।’
कछुए ने कहा ‘ अच्छा तुम मुझे पहला रत्न दो तभी मैं उसके जैसा दूसरा रत्न लेकर तुम्हें दे दूंगा।’
शिकारी ने उत्साह में वह रत्न कछुए को दे दिया।
कछुए ने रत्न लेकर कहा ‘ न लेना एक, न देना दो।’ इतना कहकर उसने नदी में वापस डुबकी लगाई।
शिकारी ने गुस्से में आकर मोर को ढूंढा लेकिन वह उसे नहीं मिला।
शिकारी पछताता और हाथ मलता हुआ घर वापस लौट आया। ज्यादा लालच का यही परिणाम होता है।
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