प्रसन्नता और हास्य-Happiness and Humor

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प्रसादे सर्वदु: खाना हानिरस्योपजायते ।
प्रसन्न चेतसो ह्याशु बुद्धि: पर्यवतिष्ठते ।।

‘अतः करण की प्रसन्नता होने पर साधक के संपूर्ण दु:खों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्न चित्तवाले कर्म योगी की बुद्धि शीघ्र ही सब और से हटकर एक परमात्मा में ही भली भांति स्थिर हो जाती है।’

खुशी जैसी खुराक नहीं और जनता जैसा गम नहीं। हरिनाम, रामनाम, ओंकार के उच्चारण से बहुत सारी बीमारियां मिटती हैं और रोगप्रतिकराक शक्ति बढ़ती है।

हास्य का सभी रोगों पर औषधि की नाई उत्तम प्रभाव पड़ता है।

हास्य के साथ भगवन्नाम का उच्चारण एवं भगवदभाव होने से विकार क्षीण होते हैं, चित्त का प्रसाद बढ़ता है इसी आवश्यक योग्यताओं का विकास होता है।

असली हास्य से तो बहुत सारे लाभ होते हैं।

भोजन के पूर्व पैर गीले करना तथा 10 मिनट तक हंसकर फिर भोजन का ग्रास लेने से भोजन अमृत के समान लाभ करता है।

पूज्य श्री लीलाशाहजी बापू भोजन के पहले हंसकर बाद में ही भोजन करने बैठते थे वह 93 वर्ष तक निरोगी रहे थे।

दिल का रोग, हृदय की धमनी का रोग, दिल का दौरा, आधासीसी, मानसिक तनाव, सिर दर्द, खर्राटे, अम्लपित्त (एसिडिटी), अवसाद (डिप्रेशन), रक्तचाप (ब्लड प्रेशर), सर्दी-जुखाम, कैंसर आदि अनेक रोगों में हास्य से बहुत लाभ होता है।

सब रोगों की एक दवाई, हंसना सीखो मेरे भाई।

दिन की शुरुआत में 20 मिनट तक हंसने से आप दिनभर तरोताजा एवं ऊर्जा से भरपूर रहते हैं। हास्य आपका आत्मविश्वास बढ़ाता है।

खूब हंसो भाई ! खूब हंसो, रोते हो इस विध क्यों प्यारे?

होना है सो होना है, पाना है सो पाना है, खोना है सो खोना है।।

सब सूत्र प्रभु के हाथों में, नाहक करने का बोझ उठाना है।।

फिकर फेंक कुएं में, जो होगा देखा जाएगा।

पवित्र पुरुषार्थ कर ले, जो होगा देखा जाएगा।।

अधिक हास्य किसे नहीं करना चाहिए ?

जो दिल के पुराने रोगी हों, जिनको फेफड़े से संबंधित रोग हो, क्षय (टी. बी.) के मरीज हो, गर्भवती महिला या प्रसव में सिजिरियन ऑपरेशन करवाया हो,

पेट का ऑपरेशन करवाया हो एवं दिल के दौरे वाले (हार्ट अटैक) के रोगियों को जोर से हास्य नहीं करना चाहिए, ठहाके नहीं मारने चाहिए।

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