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जानिए कबीरदास जयंती पर उनके जीवन के बारे में
कबीर दास की जयंती हर साल जेस्ट महीने की शुक्ल पक्ष को पूर्णिमा के तिथि को मनाई जाती है। इस साल कबीर दास जयंती 24 जून को मनाई जाएगी।
संतकबीरदास हिंदी साहित्य के बहुत बड़े कवि हैं। कबीरदास हिंदी साहित्य के इकलौते भक्ति काल के ऐसे कवि हैं जो सारे जीवन समाज और लोगों के बीच अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।
लोक कल्याण ही कबीरदास जी का सच्चा जीवन था। कबीरदास जी को एक सच्चे विश्व प्रेमी के रूप में जाना जाता है।
कबीरदास जी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनकी अपनी कला में अच्छी गति और प्रखरता थी। कबीरदास जी को समाज में जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है।
कबीरदास जी का प्रारंभिक जीवन
कबीरदास जी का जन्म 1398 ई में हुआ था। कबीरदास जी के जन्म से जुड़ी हुई कई लोगों द्वारा कई बातें कही गई हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि जगत गुरु रामानंद स्वामी जी के आशीर्वाद से काशी में रहने वाली एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से जन्मे थे।
जिसके बाद की यह मान्यता है कि ब्राह्मणी जी उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आई। जिसके बाद उस नवजात शिशु को वहां से एक नीरू नाम का जुलाहा अपने घर ले गया।
इसके बाद नीरू नाम के जुलाहा ने ही उस बच्चे का पालन-पोषण किया। जिसके बाद इस बच्चे को कबीर कहा जाने लगा।
वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों का कहना है कि कबीरदास जी जन्म से मुसलमान थे और युव अवस्था में स्वामी रामानंद के साथ रहने के बाद उन्हें हिन्दू धर्म की बातें पता चलीं।
कहा गया है कि एक दिन कबीरदास जी पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर गए थे।
उसी वक्त रामानंद जी, गंगा स्नान करने के लिए सीढ़ियों से उतरते वक्त उनका पैर कबीरदास जी के शरीर पर पड़ गया। तभी अचानक से कबीरदास जी के मुंह से राम शब्द निकला।
जिसके बाद कबीरदास जी ने राम को ही दीक्षा- मंत्र मान लिया। इसके बाद कबीरदास जी ने रामानंद को ही अपना गुरु मान लिया।
वहीं कुछ कबीरपंथीयों का यह मानना है कि कबीर दास जी का जन्म काशी में लहरतारा तालाब में अमन के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ।
कबीरदास जी की शिक्षा
कबीरदास जी जब बड़े होने लगे तो उन्हें महसूस हुआ कि वे ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं है और साथ ही वे अपने साथ के अन्य बालकों से थोड़े अलग भी हैं।
कबीर दास जी के माता पिता के पास उन्हें मदरसे बेचने के साधन नहीं थे। कबीर दास जी बहुत ही गरीब परिवार से थे उनके पिता को हर वक्त खाने-पीने की चिंता रहती थी तो वह पढ़ाई के बारे में कैसे सोचते।
इसी कारण कबीर दास जी भी कभी भी किताबी विद्या प्राप्त नहीं कर पाए।
कबीरदास जी का विवाहित जीवन
कबीर दास जी का विवाह वनखेड़ी बैरागी की पालिता कन्या ‘लोई’ के साथ हुआ था। विवाह के पश्चात कबीर दास जी की कमाल और कमाली नाम की दो संताने थी जबकि कबीर दास जी को कबीर के पन्नों में बाल ब्रह्मचारी कहा गया है।
कबीर के पत्तों के अनुसार कमाल कबीर का शिष्य था तथा कमाली और लोई कबीर की शिष्या थीं।
कबीरदास जी के व्यक्तित्व
हजारों वर्षों में हिंदी साहित्य के इतिहास में कबीर दास के जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई कवि नहीं हुआ है। कबीरदास मजाक स्वभाव को भी झाड़ फटकार कर चल देने वाले व्यक्ति थे।
कबीरदास के इसी व्यक्तित्व ने उन्हें हिंदी साहित्य का अद्भुत व्यक्ति बना दिया। कबीरदास के इसी व्यक्तित्व के कारण उनकी रचनाएं श्रोताओं को आकर्षित करती थी।
कबीर दास ने कभी खुद ग्रंथ नहीं लिखे। कबीर दास ने हमेशा अपने ग्रंथों को बोला और उनके शिष्यों ने उन ग्रंथों को लिखा। कबीर दास बस एक ही ईश्वर को मानते थे।
इसके अलावा मंदिर,मस्जिद, रोजा, मूर्ति आदि को कबीर दास जी कभी नहीं मानते थे। कबीर दास जी के नाम से मिले ग्रंथों की संख्या भिन्न-भिन्न लेखों के हिसाब से अलग-अलग है।
कबीरदास जी का साहित्यक परिचय
कबीर दास जी बहुत बड़े संत, कवि और समाज सुधारक थे। इसी कारण कबीर दास को संत कबीर दास भी कहा जाता था। कबीर दास की कविताओं में अक्सर पाखंडीयों के पाखंडवाद और धर्म के नाम पर ढोंग करने वाले लोगों को ललकार का हुआ आया।
इसी के साथ कबीर दास की कविताओं के एक-एक शब्द ने असत्य और अन्याय की पोल खोल कर रख दी।
कबीरदास की मृत्यु
कबीर दास ने काशी के पांच मगहर में अपने प्राण त्याग दिए थे। ऐसी मान्यता भी है कि कबीर दास की मृत्यु के पश्चात उनके शव को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया था।
कबीरदास के शव को लेकर सबसे बड़ा विवाद हिंदू और मुसलमानों के बीच हो गया था। हिंदुओं का कहना था कि कबीर दास के शव का संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से हो।
वहीं मुस्लिम लोगों का कहना था कि मुस्लिम रीति से हो।
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