हर साल परशुराम जयंती देशभर में 14 मई को मनाई जाती है। परशुराम जयंती हर वर्ष भगवान विष्णु जी के छठे अवतार के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है।
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परशुराम जयंती का शुभ मुहूर्त
परशुराम जयंती प्रदोष काल में मनानी शुभ मानी जाती है। इसलिए इस वर्ष भी 14 मई को प्रदोष काल में परशुराम जयंती मनाना शुभ रहेगा।
प्रदोष काल का समय सूर्यास्त के बाद और रात्रि के समय से पहले का होता है। इस साल परशुराम जयंती का प्रदोष काल का समय 7:04 पर रहेगा।
कौन थे परशुराम
ऋषि जमादग्नि तथा रेणुका के 5वें पुत्र थे परशुराम।ऋषि जमादग्नइ सप्तऋषि में से एक ऋषि थे। विष्णु भगवान के अवतार के रूप में परशुराम जी अवतरित हुए थे।
हिंदू धर्म की कथाओं के अनुसार यह मान्यता है कि त्रेता युग एवं द्वापर युग से परशुराम जी अमर थे। परशुराम जी वीरता के बहुत बड़े उदाहरण हैं।
त्रेता युग के दौरान रामायण में और द्वापर युग के दौरान महाभारत में परशुराम जी ने बहुत बड़ी अहम भूमिका निभाई थी।
परशुराम जयंती का महत्व और आयोजन
परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार थे। इसलिए परशुराम जयंती मनाने का महत्व और भी बढ़ जाता है।
हिंदू धर्म में धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के परशुराम जी एकमात्र ऐसे अवतार हैं जो आज भी इस पृथ्वी पर जीवित हैं।
परशुराम जी का दक्षिण भारत के उडुपी के पास में ही एक बहुत बड़ा और प्रसिद्ध मंदिर है।
हिंदू धर्म में कल्कि पुराण के अनुसार, कलयुग में जब भगवान विष्णु के 10वें अवतार कल्कि जन्म लेंगे तब उनको अस्त्र-शस्त्र में पारंगत परशुराम जी ही करेंगे।
भगवान राम से मिलने के बाद परशुराम जी भगवान विष्णु जी के ओर भी अवतारों से मिलेंगे। भगवान परशुराम जी की शांति के बहुत बड़े आयोजन किए जाते हैं।
इस दिन बड़ी बड़ी शोभायात्रा और जुलूस निकाले जाते हैं।
हिंदू धर्म में जो लोग परशुराम जी को मानते हैं वह सभी लोग इस दिन बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं और इस दिन को अनेक रूपों में मनाते हैं।
परशुराम जयंती के दिन मंदिरों में हवन के साथ बड़े-बड़े पूजन किए जाते हैं। इसी के साथ इस दिन अक्षय तृतीया की बनाई जाती है।
जिस दिन हिंदू धर्म के सभी लोग बढ़-चढ़कर पूजा पाठ में हिस्सा लेते हैं और दान करते हैं।
इसके साथ परशुराम जी के भक्तगण मंदिरों में भंडारे का भी आयोजन करते हैं और सभी भक्त मिलजुल कर प्रसाद ग्रहण करते हैं।
कुछ लोग इस दिन उपवास रखकर भी पूजन करते हैं।
परशुराम जी की विशेषताएं
अपनी अद्भुत शस्त्र विद्या से परशुराम जी ने कई गुणवान षिष्यों को युद्ध में हराया।
परशुराम जी के कई शिष्य थे लेकिन सबसे ज्यादा प्रिय शिष्य उनके गंगापुत्र भीष्म रहे जिन्हें पूरे भारत के लोग सम्मान पूर्वक देखते हैं।
गंगापुत्र भीष्म के अलावा द्रोण और कर्ण भी परशुराम जी के शिष्य रहे। परशुराम जी हिंदू धर्म के दोनों गीता और महाभारत काव्य में काफी प्रचलित हैं।
श्री रामचरितमानस में तुलसीदास जी द्वारा लिखा परशुराम और लक्ष्मण के बीच में हुआ विवाद काफी प्रचलित है।
परशुराम जी अपने पिता को अपना गुरु मानते थे और परम पितृ भक्त थे। परशुराम जी के लिए अपने पिता की आज्ञा से ऊपर कुछ भी नहीं था।
एक दिन किसी कारण की वजह से परशुराम जी के पिता उनकी माता से क्रोधित हो गए और उन्होंने परशुराम जी को अपनी माता का व्रत करने को कहा।
परशुराम जी ने अपने पिता की आज्ञा से सर्वोपरि कुछ भी नहीं रखा और अपनी माता का वध कर दिया।
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