मेरे मकान के पिछवाड़े एक झुरमुट में महोख नाम के पक्षी का एक जोड़ा रहता है।
महोख़ की आंखें तेज रोशनी को नहीं से सकती, इससे यह पक्षी ज्यादातर रात में और शाम को या सबेरे जब रोशनी की चमक धीमी रहती है,
अपने खाने की खोज में निकलता है। चुगते – चुगटे जब नर और मादा दूर – दूर पड़ जाते हैं,
तब एक खास तरह की बोली बोलकर को पूत – पूत! या चुप – चुप! जैसी लगती है, एक दूसरे को अपना पता देते हैं, या बुलाते हैं।
इनकी बोली एक बहुत ही सुन्दर कहानी गांवो में प्रचलित हैं।
वह यह है – कहा जाता है कि जब महोख के पहला लड़का पैदा हुआ और वह सायना हुआ,
तब एक दिन उसके माता – पिता ने महुवे के बहुत से फूल जमा किए और बेटे को उसकी रखवाली पर बैठा दिया।
महूवे के फूल सुख कर काम हो गए। शाम को माता – पिता घर आए,
उन्होंने फूलों को तोला तो कम पाया और यह शक किया कि बेटे ने फूल खा लिए, मेरे क्रोध के उन्होंने बेटे को मारते – मारते मार ही डाला। दूसरे दिन उन्होंने फ्र से बहुत से फूल बटोरे।
वे भी सूखने पर काम हो गए, तब माता – पिता को अपनी भूल मालूम हुई और वे पछताने लगे।
तबसे से शर्म के मारे उन्होंने दिन में बाहर निकलना ही छोड़ दिया।
अब जब कभी और प्रायः रोज ही मां को अपने पहले बेटे की याद आती, तब वह पूत – पूत करके रो उठती है।
उसे सुनकर बाप तत्काल कहता है – चुप – चुप!!
अर्थात् याद दिलाकर दुखी मत हो या अपनी मूर्खता की बात कोई दूसरा जान न ले।
है यह चोटी से कहानी पर क्रोध के आवेश में आकर अन्याय कर डालने वालों के लिए बड़ी उपदेशजनक भी है।
क्रोध की ऐसी कितनी ही घटनाओं का परिणाम भी महोख़ से मिलता – जुलता सा ही होता है।
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