वैराग्य का पहला पाठ-First lesson of Recluse

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एक ब्राह्मण बेहद क्रोधी स्वभाव का था और घर में लड़ाई होने पर हमेशा पत्नी को यह धमकी दिया करता था,

कि में घर छोड़कर साधु संतोबा का शिष्य बन जाऊंगा। यह सुन पत्नी डर जाती थी।

एक दिन ब्राह्मण की गैरमौजूदगी में संतोबा भिक्षा मांगने उसके घर आए, तो पत्नी ने संत से पति की धमकी के बारे में बताया।

संतोबा हस्ते हुए बोले, पति से कहना कि जाओ, अभी संत के शिष्य बन जाओ।

अगले दिन भोजन तैयार होने में विलंब होते देख ब्राह्मण ने फिर घर छोड़कर जाने की धमकी दी,

तो पत्नी ने कहा, अगर आप सचमुच साधु बनना चाहते हैं, तो में आपको रोकूंगी नहीं।

ब्राह्मण ने इसे अपना अपमान समझा और उसी क्षण घर से निकल गया।

संतोबा उसे देखकर सारी बात समझ गए और कहा,कपड़े उतार कर लंगोटी धारण कर लो।

ब्राह्मण ने लंगोटी में ठिठुरने लगा। दोपहर में खाने में उसे कंद मूल मिला, जो रूखा था।

कंद मूल उनसे खाए नहीं गए। रात होते – होते ब्राह्मण का साधु बनने का नशा उतर चुका था।

संतोबा ने उससे कहा, सुबह उठकर तुम्हें पांच घरों में भिक्षा मांगने जाना पड़ेगा।

अगर भिक्षा मांगने में शर्म आती हो तो घर जा सकते हो।

तुम परिवार में रहकर भी भगवान का भजन और लोगों की सेवा कर सकते हो।

वह घर लौट गया और संत की सीख पर अमल करने लगा।

आगे चल कर वह संत नरोत्तम राव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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