सर्वपरिचित एवं मध्यम तथा गरीब वर्ग के द्वारा भी प्रयोग में लाया जा सकने वाला फल है बेर berry।
यह पुष्टिदायक फल है, किन्तु उचित मात्रा में ही इसका सेवन करना चाहिए। अधिक बेर खाने से खांसी होती है।
कभी भी कच्चे बेर नहीं खाने चाहिए। चर्मरोग वाले व्यक्ति बेर न खाएं।
स्वाद एवं आकर की दृष्टि से इसके ४ प्रकार जाते हैं:
१. बड़े बेर (पेबंदी बेर) : खजूर के आकार के, बड़े – बड़े, लंबे – गोल बेर berry ज़्यादातर गुजरात, कश्मीर एवं पश्चिमोत्तर प्रदेशों में पाए जाते हैं।
ये स्वाद में मीठे, पचने में भारी, ठंडे, मांसवर्धक, मलभेदक, श्रमहर, हृदय के लिए हितकर, तृषाशामक, दाह शामक, शुक्र वर्धक तथा क्षयनिवारक होते हैं।
ये बवासीर, दस्त एवं गर्मी की खांसी में भी उपयोगी होते है।
२. मीठे – मध्यम बेर berry : ये मध्यम आकर के एवं स्वाद में मीठे होते है तथा मार्च महीने में अधिक पाए जाते हैं।
ये गुण में ठंडे, मल को रोकने वाले, भारी, वीर्य वर्धक एवं पुष्टिकारक होते हैं।
ये पित्त, दाह, रक्तविकार, क्षय एवं तृषा में लाभदायक होते हैं, किन्तु गुणों में बड़े बेर से कुछ कम। ये काफकराक भी होते हैं।
३. खटमिट्ठे मध्यम बेर : ये आकर में मीठे – मध्यम के बेर berry से कुछ चोट, कच्चे होने पर स्वाद में खट्टे – कसैले एवं पक जाने पर खट्टे – मीठे होते हैं।
इसकी झड़ी कंटीली होती है। ये बेर मलाव रोधक, रुचि वर्धक, वायु नाशक, पित्त एवं कड़कराक, गरम, भारी, स्निग्घ एवं अधिक खाने पर दाह उत्पन्न करने वाले होते हैं।
४. चोट बेर (झड़ बेर) : चने के आकार के लाल बेर स्वाद में खट्टे – मीठे, कसैले, ठंड, भूख तथा पाचन वर्धक, रुचि कर्ता, वायु एवं पित्त शामक होते हैं। ये अक्टूबर – नवंबर महीनों में ज़्यादा होते हैं।
सूखे बेर : सभी प्रकार के सूखे बेर पचने में हल्के, भूख बढ़ाने वाले, कफ – वायु – तृषा – पित्त व थकान का नाश करने वाले तथा वायु की गति को ठीक करने वाले होते हैं।
औषदी प्रयोग :
बाल झड़ना तथा रूसी : बेर के पत्तों को पीस कर पानी में डालें और मथनी से माथे। उससे जो झग उत्पन्न हो, उसे सिर में लगने से भी बालों का झड़ना रुकता है।
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