आजकल अधिकांश लोग मशीन या जूसर आदि से निकाला हुआ रस पीते हैं।
‘सुश्रुत संहिता’ के अनुसार यंत्र ( मशीन, जूसर आदि ) से निकाला हुआ रस भरी, दाहकारी, कब्जकारक होने के साथ ही (यदि शुद्धतापूर्वक नहीं निकाला गया है तो) संक्रामक कीटाणुओं से युक्त भी हो सकता है।
‘सुश्रुत संहिता’ के अनुसार गन्ने को दातों से चबाकर उसका रस चूसने पर व दाहकारी नहीं होता और इससे दांत मजबूत होते हैं।
अतः गन्ना जूस का खाना चाहिए।
‘ भावप्रकाश निघंटु’ के अनुसार गन्ना रक्तपित्त नामक व्याधि को नष्ट करने वाला, बलवर्धक, वीर्यवर्धक, कफकारक, पाक तथा रस में मधुर, स्निग्ध, भारी, मूत्रवर्धक व शीतल होता है। यह सब पके हुए गन्ने के गुण हैं।
औषड़ी प्रयोग :
१. पथरी : गन्ना नित्य प्रातः चूसते रहने से पथरी टुकड़े-टुकड़े होकर बाहर निकल जाती है|
२. पित्त की उल्टी होने पर : एक गिलास गन्ने के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
३. रक्तता तिसार : एक कप गन्ने के रस में आधा कब अनार का रस मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से रक्त्ता तिसार मिटता है।
विशेष :
यकृत की कमजोरी वाले, हिचकी, रक्त विकार, नेत्र रोग, पीलिया, पित्त प्रकोप व जलीय अंश की कमी के रोगी को गन्ना चूस कर ही सेवन करना चाहिए।
इसके नियमित सेवन से शरीर का दुबलापन दूर होता है और पेट की गर्मी व ह्रदय की जलन दूर होती है।
शरीर में थकावट दूर होकर तरावट आती है। पेशाब की रुकावट व जलन भी दूर होती है।
सावधानी :
मधुमेह, पाचनशक्ति की मंदता, कफ व कृमि के रोग वालों को गन्ने के रस का सेवन नहीं करना चाहिए।
कमजोर मसूड़े वाले, पायरिया व दातों के रोगियों को गन्ना जूस का सेवन नहीं करना चाहिए।
एक मुख्य बात यह है कि बाजारों मशीनें द्वारा निकाले गए रस से संक्रामक रोग होने की संभावना रहती है।
अतः गन्ने का रस निकालने आते समय शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
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