मालदा (पश्चिम बंगाल) शहर के एक बगीचे में एक अफगान व्यापारी ने रात बिताई और सवेरे अपना सामान समेटकर वह आगे बढ़ गया।
कुछ मील दूर जाने पर उसे याद आया कि रुपयों से भरी थैली उसने पेड़ पर टांग दी थी, उसे वह वहीं भूल आया है।
वीरेश्वर नामक एक बालक बगीचे में भ्रमण के लिए पहुंचा, तो उसने पेड़ पर तंगी थैली देखी।
उसने उसे उतारा और सोचा कि कोई अपनी थैली भूल गया होगा, थैली उस तक पहुंचानी चाहिए।
बालक को माली से पता चला कि एक काबुली व्यापारी रात में बगीचे में ठहरा था।
वह दक्षिण की ओर रवाना हुआ है। बालक उस थैली को लेकर दक्षिण की ओर दौड़ गया।
कुछ दूर जाने पर उसे एक काबुली व्यापारी चिंतित मुद्रा में आता हुआ दिखाई दिया। बालक के हाथ में थैली देखकर वह रुक गया।
बालक बोला, मैं इसे आपको ही देने के लिए ला रहा था।
व्यापारी ने आश्चर्य के साथ बालक से पूछा, क्या तुम्हें लालच नहीं आया?
बालक ने उत्तर दिया, मेरी मां मुझे धार्मिक कहानियां सुनाते हुए बताया करती है कि दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले के समान समझना चाहिए।
धर्म की इस शिक्षा के कारण ही रुपयों से भरी आपकी थैली मेरे मन को नहीं भटका सकी। वह अफगान व्यापारी बोला, अपनी महान मां को मेरा सलाम बोल देना।
वास्तव में मां – बाप ही बच्चों को अच्छा बना सकते है।
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