ॐ ईश्वर का बोध कराने वाला शब्द है। ब्रह्म के ओंकार के अवयव आकर, उकार तथा मकार को तीन वेदों से प्राप्त किया अर्थात ॐ तीन वेदों का मुख्य तत्व है।
अतः इसे मांगलिक कहा गया है। अ से सृष्टि की उत्पत्ति उ से जगत की स्थिति या विस्तार म से सृष्टि के अंत या प्रलय का बोध होता है।
ॐ के द्वारा मानव परमात्मा और उसकी शक्ति का अनुमान करता है। ॐकार की महिमा सभी भारतीय ग्रंथ पंथो में है।
प्रणव का दूसरा नाम ॐकार है। अवतीत ॐ इस व्युत्पत्ति के अनुसार सर्वरक्षक परमपिता परमात्मा का नाम ॐ है। सभी वेद ॐ की महिमा एक स्वर में बताते हैं।
ॐकार अर्थात प्रलय की रचना अ+ऊ+म तीन वर्णों से हुई है। प्रणव का लेखन मुंड, मध्य मुंड और अधो मुंड के रूप में होता है।
चंद्र, सूर्य और अग्नि रूपी तीन मात्राएं ॐ में विराजमान है। और अग्नि की 108 मात्राएं हैं। इसका योग 360 है।
ॐ की ध्वनि का योग शास्त्र में बड़ा महत्व है।
देह और मन की सुषुप्त शक्तियों को जाग्रत करने का षडचक्रों को भेदने के लिए हठयोग में ॐकार की महिमा को बताया है।
योगी लोग ‘ॐ’ कार का उच्चारण दीर्घतम घंटा – ध्वनि के समान बहुत लंबा तथा अत्यंत प्लुत स्वर से करते हैं।
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