नमामि फेसबुकम

संजीव शुक्ल आजकल सोशल मीडिया का दौर है,जिसे देखो मीडिया में छाया हुआ है। हर कोई...

“दंगों के लिए अभिशप्त हम”

संजीव कुमार शुक्ला इन दंगो ने देश की शक़्ल बिगाड़ के रख दी है। ये वो ज़ख्म हैं जिनको...

बजट की समझ-Budget Understanding

कुछ छिद्रान्वेषी  राजनीतिक विश्लेषक लोग पूछते हैं बजट में Budget कहाँ है। इसमें Budget जैसा तो कुछ है...

हमारी राजनीतिक चेतना का सिकुड़ता सामाजिक बोध-The shrinking social perception of our political consciousness

आख़िर क्या हो गया है, हमारी मानवीय संवेदनाओं को? वे मानवीय मूल्यों के प्रति इतनी निष्ठुर कैसे हो गईं? लोग मर रहें...

खालिस्तानी किसान-khalistani kisan

अरे भाई किसानों को खालिस्तानी कहने पर इतना क्या बुरा मानना !!!!  अरे यह तो  उनकी पहचान है।...

हनुमान जी की जाति.

संजीव कुमार शुक्ला अब हनुमानजी भी अनुसूचित जाति में दर्ज़ हुए ....

अठावले को नमन

संजीव शुक्ल अपनी कविता से तुकबंदी साहित्य को शिखर पर ले जाने वाले काव्य-जगत के कोहिनूर...

लोकतंत्र और आंदोलन-Democracy and Movement

लोकतंत्र सिर्फ़ एक राजनीतिक प्रविधि भर नहीं है और न सिर्फ़ एक संवैधानिक ढांचा भर है, क्योंकि कई बार संवैधानिक ढांचे में...

यह लिहाज ही है जिसका लिहाज है-Ye Lihaj hi hai Jiska Lihaj hai

हम लोग लिहाजप्रिय हैं। हम सभी कभी उम्र का तो कभी महिला का तो कभी परिवार का लिहाज करते पाए जाते हैं। ...

साहब, छोटेलाल और किसान -Sahab, Chotelal aur Kisan

अरे सरकार ये किसान आपसे बात करना चाहते हैं…कौन किसान? अरे वही जो आंदोलन कर रहे हैं ऐसे...

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समझ की ही तो बात है…

एक था भिखारी ! रेल सफ़र में भीख़ माँगने के दौरान एक सूट बूट पहने सेठ जी उसे दिखे। उसने सोचा कि...
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