एक व्यंग्य

संजीव कुमार शुक्ला ये बग्घा ट्रम्प शुरू से लकड़बग्घा था। इसकी चालाकी तो अब समझ में आई जब इसने अपने सारे...

नमामि फेसबुकम

संजीव शुक्ल आजकल सोशल मीडिया का दौर है,जिसे देखो मीडिया में छाया हुआ है। हर कोई...

दलबदल एक क्रांतिकारी गतिविधि

संजीव शुक्ल इधर भारतीय समाज में दलबदलुओं को कुछ ज़्यादा ही गिरी हुई निगाह से देखा...

अपराध की जाति

संजीव शुक्ल अपराधी सिर्फ़ अपराधी होता है, कुछ और नहीं। उसका जाति के आधार पर बचाव...

“”पुलिया महात्म्य””

संजीव शुक्ल पुलिया, पुल का छोटा रूप है। यह पुल की विराटता-भयावहता के विपरीत सूक्ष्मता...

“दंगों के लिए अभिशप्त हम”

संजीव कुमार शुक्ला इन दंगो ने देश की शक़्ल बिगाड़ के रख दी है। ये वो ज़ख्म हैं जिनको...

“पुरस्कारों का दुत्कारीकरण”

संजीव शुक्ल इधर हम भारतीयों में एक सकारात्मक बदलाव आया है, वह है पुरस्कारों का...

एक परंपरा का फ़िर से उद्भव

संजीव कुमार शुक्ला हमारी परंपरा में शाप देने की एक उत्कृष्ट व महती परंपरा रही है। "देहउँ श्राप कि मरिहउँ...

नमन उन घोटालेबाजों को..

संजीव कुमार शुक्ला जिस तरह ईश्वर होता तो है, पर दिखाई नही देता, ठीक उसी तरह...

आखिर हम कितने लोकतांत्रिक हैं

संजीव शुक्ल हमारे देश में लोकतंत्र का इतिहास बहुत पुराना रहा है। लोकतांत्रिक इतिहास की...

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समझ की ही तो बात है…

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